नई दिल्ली : बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए दो दौर का मतदान हो चुका है। अब आखिरी तीन दौर के चुनाव के लिए कोई भी पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। ऐसे में बीजेपी की तरफ से पीएम मोदी ने दोबारा मोर्चा संभाल लिया है। पार्टी के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी अगले छह दिनों में 17 रैलियों को संबोधित करने वाले हैं। पहले दो चरण के लिए पीएम ने 9 रैलियां की थीं। पीएम की इस तूफानी रैली का साफ संकेत है कि अब बिहार में आर-पार की लड़ाई है, और कोई भी पार्टी यहां खतरा नहीं मोल लेना चाहेगी।
एक लंबे ब्रेक के बाद एक्शन में आए पीएम मोदी ने अचानक महागठबंधन के उपर हमला तेज कर दिया है और इसका क्रेडिट कहीं न कहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को जाता है जिन्होंने दूसरे चरण के बाद रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के जरिए छोटी छोटी जनसभाएं करके पीएम मोदी को खुल कर अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेता के रूप में पेश किया। इस दौरान इन नेताओं ने आरक्षण के मुद्दे पर उपजे रोष को भी काफी हद तक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया है।
इससे दलित और पिछड़े वर्ग का एक बड़ा तबका एनडीए गठबंधन की तरफ झुकता दिख रहा है। यही नहीं पीएम मोदी ने भी रविवार की रैली में संकेतों में अपने आप को ओबीसी बताने से नहीं चूके। हालांकि बिहार के इस चुनावी दंगल के परिणाम का अंदाजा लगा पाना तो काफी मुश्किल है, लेकिन दूसरे और तीसरे चरण के बीच की लंबी अवधि ने एनडीए के लिए संजीवनी का काम किया है। यही कारण है कि इस चुनाव में दो चरणों के बाद बैकफुट पर गए बीजेपी को अचानक ऑक्सीजन मिल गई है और इसका फायदा मोदी ने उठाना भी शुरू कर दिया है।
रणनीति में किया बदलाव
पीएम की रैली को अगर ध्यान से देखा जाए तो इतना साफ है कि दो चरणों के बाद बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीति में भारी बदलाव किया है। एक तरफ जहां पोस्टर और नारों के जरिए स्थानीय नेताओं को तरजीह दी है, तो वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी पहले से ज्यादा आक्रामक नजर आ रहे हैं। पीएम मोदी रविवार के रैली में नीतीश से ज्यादा लालू पर हमलावर दिखे और वह भी उन्हीं की शैली में। मतलब साफ है कि बीजेपी आरक्षण और दलित समुदाय पर लगातार हो रहे हमलों से हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश में जी जान से जुट गई है।
रविवार को बिहार में धुआंधार प्रचार की शुरुआत करते हुए जिस तरह पीएम मोदी ने छपरा में राज्य के लिए छह सूत्रीय कार्यक्रम रखा (युवकों को पढ़ाई, कमाई और बुजुर्गों को दवाई और ‘बिजली-पानी-सड़क’) आर आरजेडी को राष्ट्रीय जादू-टोना पार्टी बताया, उसी से मोदी के इरादे को समझा जा सकता है। यही नहीं तांत्रिक के मुद्दे पर भी मोदी ने लालू पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में मिले यादवों के भारी जनसमर्थन के को ध्यान में रखते हुए मोदी अब तक सीधे और आक्रामक हमलों से बचते नजर आ रहे थे।
यही नही मोदी ने युवाओं के लिए विकास का मुद्दा उठाने से भी परहेज नहीं किया। हाल के दिनों में बीजेपी के रुख से साफ है कि बीजेपी अपनी रणनीति में भारी बदलाव करते हुए युवाओं और विकास के मुद्दे को एक बार फिर उठाने की कोशिश कर रही है। यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि नए मतदाताओं का रुझान एनडीए की तरफ होता है या जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन की तरफ। इसमें कोई दोराय नहीं है कि बिहार में जातीय मुद्दा हमेशा से ही हावी रहा है, लेकिन इस चुनाव में इसके अलावा भी कुछ मुद्दे हैं जो बिहार के राजनीतिक भाग्य का फैसला कर सकते हैं।
युवा मतदाता अहम
बिहार में युवा मतदाताओं की बात करें तो 6.6 करोड़ से अधिक मतदाताओं में कुल करीब 2 करोड़ मदताता 30 साल के नीचे के हैं। निर्वाचन आयोग के इस आंकड़ों से साफ है कि पांच चरणों वाली बिहार विधानसभा चुनाव में 30 फीसदी वोटर 30 साल से कम के हैं। इन युवा मतदाताओं के रुझान की बात करें तो सीएसडीएस के अध्ययन साफ है कि इस वर्ग के वोटिंग का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिलता रहा है।
सीएसडीएस के आर्थिक आधार पर किए गए अध्ययन के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में, निम्न वर्ग समूहों के 18-22 साल के वोटरों में जहां काग्रेस को 18 फीसदी मत मिले थे तो बीजेपी को 35 फीसदी। इसी वर्ग के 23-25 साल के युवा वोटरों में काग्रेस को 18 फीसदी मत मिले तो बीजेपी को 34 फीसदी। अगर मध्यम वर्ग समूह के वोटरों की बात करें तो इस समूह के 18-22 साल के वोटरों में जहां कांग्रेस को 17 फीसदी तो बीजेपी को 40 फीसदी मत मिले। इसी समूह में 23-25 साल के वोटरों में कांग्रेस को 21 फीसदी और बीजेपी को 32 फीसदी वोट मिले।
इन आकड़ों में उच्च वर्ग के मतदाताओं की राय और भी अलग है। इस समूह में 18-22 साल के वोटरो में जहां मात्र 11 फीसदी वोटरों ने कांग्रेस को अपना वोट दिया तो 44 फीसदी वोटरों ने बीजेपी को चुना। वहीं 23-25 साल के वोटरों में 16 फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया तो 43 फीसदी ने बीजेपी को। इन आंकड़ों साफ है कि युवा वर्ग के मतदान का अधिकतम फायदा बीजेपी को मिला है, और यह आंकड़ा मध्यम और उच्च वर्ग के युवाओं के साथ और भी बढ़ जाता है।
यही कारण है कि बीजेपी ने एक ब्रेक के बाद अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए और अधिक ताकत से मैदान में उपस्थिति दर्ज करा दी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी अगर अपने इस रणनीति में सफल होती है तो महागठबंधन के लिए अगले तीन चरणों में परिणाम मुश्किल हो सकते है। क्या महागठबंधन अपनी रणनीति में सफल रहा है, क्या बीजेपी ने चेहरे की लड़ाई में राजनीतिक ट्रैक पा लिया है? क्या पिछले एक साल में जुड़े 31 लाख नए मतदाता एनडीए की जीत के सूत्रधार बनेंगे? जबाव 8 नवंबर को मिलेगा।